महीमा पैसे की
पैसा नचा रहा है यू इंसान को उँगलियों में .
मदारी नचाये बन्दर ज्यु शहर की गलियों में .
शोहरत उगा रहा है गमलो में क्यारियों में .
पैसा ही छा रहा है हर सिम्त वादियों में .
अल्लाह को भूल दुनिया पैसे की है पुजारिन ,
पैसे ने रख दिया है खुद उसको हाशियों में .
तहज़ीब भूल बेठे पैसे के बल पर बच्चे ,
जीना सीखा रहे हैं बुजुर्गो को बस्तियों में .
रुदाद कोई किसी की सुनता नहीं यहाँ पर ,
बहर है कानो पर अँधियारा है अंखियों में .
बस एक तेरे दर पर नज़रें लगी हुई है ,
मायूस नहीं होता कोई तेरी वादियों में .
कचरा जलाएगा तू जिस दिन मेरे इलाही ,
रख लेना मुझे चुनकर तू अपने मोतियों में .
सब्रो -करार -नसीहत है मुफलिसों की दोलत ,
पैसे के ही पुजारी शामिल है हस्तियों में .
अब तो सरस्वती भी लक्ष्मी की है पुजारिन
रख दी है वीणा उसने उसकी तिजोरियों में.
लक्ष्मी खरीदती है इल्मो हुनर अब खुद ही,
जकड़ा है आलिमों को उसने भी बेड़ियों में.
पैसे के बगेर किसीको कुछ सूझता नहीं है ,
पैसे का ही चलन है पंडितो मौलवियों में .
में हु यहाँ परेशां पैसे की ही वजह से ,
रोजाना हारता हु दुनिया से में रुपयों में .
सब कहते है दम है शब्दों में तेरे आरिफ ,
उड़ जायेंगे लेकिन ये पैसे की आंधियों में .
पंडित मुस्तफा आरिफ
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