चार पंक्ति विचार
वो मेरा खैर ख्वाह है; उसका हबीब में।
फिर भी ये कह रहे हो की हूँ ग़रीब में।
कुछ बात है की आंसू मेरे सूखते नहीं है,
दरिया अता किया है जो उसने नसीब में।
लेकिन वो हाथ से भी तो बाहर नहीं होती।
पैरों को बांध रखा हैं उसने भी हदों में,
सबके नसीब में तो चादर नहीं होती।
तुफानो में दीपक का जलना, बड़ा मुश्किल होता हैं।
उसके अपने ही जब उसकी लाठी तोड़ दें,
उसका गिरना फिर संभालना, बड़ा मुश्किल होता हैं।