जन्नत की हवा
मेरा दर्द समझ सके जो , मुझे वो मसीहा दे दे .
मुझको मेरे इलाही , तू वो मुश्किलकुशा दे दे .
मेरे दिल में क्या छुपा है , सब जानता है फिर क्यु ?
चुपचाप यू तमाशा , तू देख रहा दे दे .
न जाने तलाश मेरी , कब कैसे पूरी होगी .
मंजिल तलक में पहुंचू , वो राह ज़रा दे दे .
जुम्बिश नहीं हाथो में , है जिस्म भी शकिश्ता.
नज़रे थकी हुई है , अब तो आसरा तेरा दे दे .
टूटी हुई है लाठी , पहुंचूंगा तुझ तक कैसे ?
इतना नसीब में तू , चलना तो ज़रा दे दे .
देता है छप्पर फाड़कर , में ने सुना है सब से .
टूटी हुई चाट है मेरी , पहले साया तो ज़रा दे दे ,
रूदाद मेरी सुनता कोई नहीं जहां में ,
ऐसा कोई एक बंदा , तेरा तो यहाँ दे दे .
अब तेरे सिवा किसी पर , भरोसा नहीं है मेरा .
अब थाम ले मुझे तू , सहारा तो ज़रा दे दे .
जंगल में , बयाबां में , मजधार में , तुफा में .
दर दर की ठोकरों का , अब तो तू सिला दे दे .
तेरे सिवा यहाँ पर , कोई दूजा खुदा नहीं है .
तुझ पर ही अकीदा है , मेरा ए खुदा दे दे .
जाने कब सुनेगा , आरिफ की दुआ अल्लाह .
ज्यादा नहीं थोड़ी सी , तेरी जन्नत की हवा दे दे .
पंडित मुस्तफा आरिफ