थक हार कर इलाही !!!
क्या क्या बताऊँ सबको , तेरे बारे में खुदां में .
कुरान से खोल पाया , सब दिल की खिडकीया में .
कोई दर्द मेरा सुनले , तेरे सिवा इलाही ,
लगता नहीं बना है , ऐसा कोई जहाँ में .
हर दर हर एक चौखट पर , रुसवा हुआ में जब तो ,
थक हार कर फिर से , तेरे दर पे आ गया में .
बिगड़ी कोई बना दे , ये आरजू लिए में ,
भटका मेरे इलाही , न जाने कहा कहा में .
हर शख्श ने पुकारा , मेरा पास चल के आ जा ,
हां ! एडिया रगड़ते , वहां तक पहुँच गया में .
हर शख्श ने पुकारा , बस में ही हु मसीहा ,
मुश्किलकुषा भी में हु , माबूद में खुदा में .
तौबा कुबूल करना , लेकिन ये बात सच है ,
मजबुरिया मिलाती है , शेतान से इंसान को दुनिया में .
फिर रौशनी अता की , मेरी ज़िन्दगी में तू ने ,
शिद्दत से कुरान का , हर लफ्ज़ पढ़ गया में .
फिर तुने ही हिदायत , मुझे सब्र की अता की ,
फिर राह पर ही तेरी , सारी उमर चला में .
अब तो यही है ख्वाहिश , तेरे दर पे जब भी आऊं,
पा जाऊं तुझसे तेरे , बस रहम का दरया में .
पंडित मुस्तफा आरिफ , देलहि
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