रविवार, 1 मई 2011

SHUKRA HAI ALLAH KA



शुक्र   है  अल्लाह  का


कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .
बख्श  दी  तुने  जिसे  तेरी  हम्दो -सना .

मुझ  पे  अल्लाह  तेरा  खूब  एहसान  है .
याद  रखु  तेरे  जो  भी  फरमान  है ,
सबके  दिल  में  बसाऊ जो  कुरान  हँi.
जाकर  उनको  पदाऊ  जो  नादाँ  है .

मेरे  अल्लाह   मुझे  इसके  काबिल  बना .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

जिस  तरह  दूर  रखा  मुझे  कुफ्र  से .
जोड़े  रखा  मुझे  तुने  गोरो -फिक्र  से .
ये  सही  है  बचाया  तुने  ही  शिर्क  से .
जोडू  में  सबको  वैसे  ही  तेरे  ज़िक्र  से .

दे  दे  मुझको  हिदायत  तू  बे -इन्तहा .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

था  अँधेरा  बहुत  रौशनी  थी  नहीं .
जी  रहा  था  मगर  ज़िन्दगी  थी  नहीं .
मेरे  पेरो  के  नीचे  ज़मी  थी  नहीं .
सजदा  करता  में  वैसी  ज़बी थी  नहीं .

ऐसे  में  तूने  कुरान  अता  कर  दिया .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

तेरे  कुरान  ने  ही  आँख  खोली  मेरी ,
आखिर  तुने  ही  भरी  खली  झोली  मेरी .
एक  दिन  बोलेगी  दुनिया  भी  बोली  मेरी .
बड  जाएगी  जब  मुमिनो  की  टोली  मेरी .

मेरे  जैसा  ही  हर  शख्श  होगा  यहाँ .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

जानता  हु  की  छोटा  सा  तिनका  हु  में .
तेरी  खल्कात  में  भी  सबसे  नन्हा  हु  में .
बस  इधर  से  उधर  उड़ता  रहता  हु  में .
जोर  तुझसे  ही  पाकर  के  चलता  हु  में .

में  हु  कुछ  भी  नहीं  सब  करम  है  तेरा .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

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