मंगलवार, 31 मई 2011

THAK HAAR KAR ILLAHI !!!




 
थक  हार  कर  इलाही  !!!

क्या  क्या  बताऊँ  सबको , तेरे  बारे  में  खुदां में .
कुरान  से  खोल  पाया , सब  दिल  की  खिडकीया   में .

कोई  दर्द  मेरा  सुनले , तेरे  सिवा  इलाही ,
लगता  नहीं  बना  है , ऐसा  कोई  जहाँ  में .

हर  दर  हर  एक  चौखट   पर , रुसवा  हुआ  में  जब  तो ,
थक  हार  कर  फिर  से , तेरे  दर  पे  आ  गया  में .

बिगड़ी  कोई  बना  दे , ये  आरजू  लिए  में ,
भटका  मेरे  इलाही , न  जाने  कहा  कहा  में .

हर  शख्श  ने  पुकारा , मेरा  पास  चल  के  आ  जा ,
हां  ! एडिया   रगड़ते , वहां  तक  पहुँच  गया  में .

हर  शख्श  ने  पुकारा , बस  में  ही  हु  मसीहा ,
मुश्किलकुषा  भी  में  हु , माबूद  में  खुदा  में .

तौबा  कुबूल  करना , लेकिन  ये  बात  सच  है ,
मजबुरिया  मिलाती  है , शेतान   से  इंसान  को  दुनिया  में .

फिर  रौशनी  अता की , मेरी  ज़िन्दगी  में  तू  ने ,
शिद्दत  से  कुरान  का , हर  लफ्ज़  पढ़  गया  में .

फिर  तुने  ही  हिदायत , मुझे  सब्र  की  अता  की ,
फिर  राह  पर  ही  तेरी , सारी  उमर चला  में .

अब  तो  यही  है  ख्वाहिश , तेरे  दर  पे  जब  भी  आऊं,
पा  जाऊं  तुझसे  तेरे , बस  रहम  का  दरया में .

पंडित  मुस्तफा  आरिफ , देलहि

बुधवार, 25 मई 2011

MAHIMA PAISE KI






 महीमा पैसे की

पैसा  नचा  रहा  है  यू  इंसान  को  उँगलियों  में .
मदारी  नचाये  बन्दर  ज्यु  शहर की गलियों  में .

शोहरत  उगा  रहा  है  गमलो  में  क्यारियों  में .
पैसा  ही  छा  रहा  है  हर   सिम्त  वादियों  में .

अल्लाह  को  भूल  दुनिया  पैसे  की  है  पुजारिन ,
पैसे  ने   रख दिया  है  खुद  उसको  हाशियों  में .

तहज़ीब  भूल  बेठे  पैसे  के  बल  पर   बच्चे ,
जीना  सीखा  रहे  हैं  बुजुर्गो  को  बस्तियों  में .

रुदाद  कोई  किसी  की  सुनता  नहीं  यहाँ  पर ,
बहर  है  कानो  पर  अँधियारा  है  अंखियों  में .

बस  एक  तेरे  दर  पर  नज़रें  लगी  हुई  है ,
मायूस  नहीं  होता  कोई  तेरी  वादियों  में .

कचरा  जलाएगा  तू  जिस  दिन  मेरे  इलाही ,
रख   लेना  मुझे  चुनकर  तू  अपने  मोतियों में .

सब्रो -करार -नसीहत  है  मुफलिसों  की  दोलत  ,
पैसे  के  ही  पुजारी  शामिल  है  हस्तियों  में .

अब तो सरस्वती  भी लक्ष्मी की है पुजारिन 
रख दी है वीणा उसने उसकी तिजोरियों में.

लक्ष्मी खरीदती है इल्मो हुनर अब खुद ही,
जकड़ा है आलिमों को उसने भी बेड़ियों में.


पैसे  के  बगेर किसीको  कुछ  सूझता  नहीं   है ,
पैसे  का  ही  चलन  है  पंडितो  मौलवियों में .

में  हु  यहाँ  परेशां  पैसे  की  ही  वजह  से ,
रोजाना  हारता  हु  दुनिया  से  में  रुपयों में .

सब  कहते  है  दम  है  शब्दों  में  तेरे  आरिफ ,
उड़  जायेंगे  लेकिन  ये  पैसे  की  आंधियों  में .

पंडित  मुस्तफा  आरिफ

रविवार, 1 मई 2011

SHUKRA HAI ALLAH KA



शुक्र   है  अल्लाह  का


कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .
बख्श  दी  तुने  जिसे  तेरी  हम्दो -सना .

मुझ  पे  अल्लाह  तेरा  खूब  एहसान  है .
याद  रखु  तेरे  जो  भी  फरमान  है ,
सबके  दिल  में  बसाऊ जो  कुरान  हँi.
जाकर  उनको  पदाऊ  जो  नादाँ  है .

मेरे  अल्लाह   मुझे  इसके  काबिल  बना .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

जिस  तरह  दूर  रखा  मुझे  कुफ्र  से .
जोड़े  रखा  मुझे  तुने  गोरो -फिक्र  से .
ये  सही  है  बचाया  तुने  ही  शिर्क  से .
जोडू  में  सबको  वैसे  ही  तेरे  ज़िक्र  से .

दे  दे  मुझको  हिदायत  तू  बे -इन्तहा .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

था  अँधेरा  बहुत  रौशनी  थी  नहीं .
जी  रहा  था  मगर  ज़िन्दगी  थी  नहीं .
मेरे  पेरो  के  नीचे  ज़मी  थी  नहीं .
सजदा  करता  में  वैसी  ज़बी थी  नहीं .

ऐसे  में  तूने  कुरान  अता  कर  दिया .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

तेरे  कुरान  ने  ही  आँख  खोली  मेरी ,
आखिर  तुने  ही  भरी  खली  झोली  मेरी .
एक  दिन  बोलेगी  दुनिया  भी  बोली  मेरी .
बड  जाएगी  जब  मुमिनो  की  टोली  मेरी .

मेरे  जैसा  ही  हर  शख्श  होगा  यहाँ .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

जानता  हु  की  छोटा  सा  तिनका  हु  में .
तेरी  खल्कात  में  भी  सबसे  नन्हा  हु  में .
बस  इधर  से  उधर  उड़ता  रहता  हु  में .
जोर  तुझसे  ही  पाकर  के  चलता  हु  में .

में  हु  कुछ  भी  नहीं  सब  करम  है  तेरा .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .