सोमवार, 29 मार्च 2010

चार पंक्ति विचार


चार पंक्ति विचार


वो मेरा खैर ख्वाह है; उसका हबीब में
फिर
भी ये कह रहे हो की हूँ ग़रीब में
कुछ बात है की आंसू मेरे सूखते नहीं है,
दरिया अता किया है जो उसने नसीब में



ये सच है पांच उंगली बराबर नहीं होती
लेकिन वो हाथ से भी तो बाहर नहीं होती
पैरों को बांध रखा हैं उसने भी हदों में,
सबके नसीब में तो चादर नहीं होती




चारो तरफ थपेड़ो में चलना, बड़ा मुश्किल होता हैं
तुफानो में दीपक का जलना, बड़ा मुश्किल होता हैं
उसके अपने ही जब उसकी लाठी तोड़ दें,
उसका गिरना फिर संभालना, बड़ा मुश्किल होता हैं

3 टिप्‍पणियां:

  1. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है।
    http://gharkibaaten.blogspot.com

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  2. bahut khub likha hai i like these lines "चारो तरफ थपेड़ो में चलना, बड़ा मुश्किल होता हैं।
    तुफानो में दीपक का जलना, बड़ा मुश्किल होता हैं।
    उसके अपने ही जब उसकी लाठी तोड़ दें,
    उसका गिरना फिर संभालना, बड़ा मुश्किल होता हैं।"

    जवाब देंहटाएं
  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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