सोमवार, 1 अगस्त 2011

DAR KE AAGE JEET HAI


 
डर के  आगे  जीत  है 

डरना  सीखो  अल्लाह  से ,
जीत  तुम्हारी  होगी .
हर  चलन  यहाँ  तुम्हारा  होगा ,
हर  रीत  तुम्हारी  होगी .

यही  आज  का  गीत  है .
डर  के  आगे  जीत  है .

खोफे  खुदा  नहीं  रहा  तो ,
घाटे  में  रह  जाओगे .
राहे  खुदा  ही  छोड़  दी  तो ,
कैसे  उस  तक  जाओगे .
दुनिया  के  माया  जाल  में ,
इस  क़दर  उलझते  जाओगे .

उससे  नाता  नहीं  रहेगा ,
और  न  प्रीत  तुम्हारी  होगी .
डर  रखो  अल्लाह  का ,
जीत  तुम्हारी  होगी .

यही  आज  का  गीत  है .
डर  के  आगे  जीत  है .

अल्लाह  से  डरना  सीखलो,
बातें  मेरी  मानकर .
सीधी राह  बताते  हैं ,
उसके  सारे  पैग़म्बर .
आओ  चल  पड़े   हम  सब ,
उनकी  बताई  राह  पर .

अल्लाह  की  मर्जी  से  जुडोगे,
उससे  सच्ची  प्रीत  तुम्हारी  होगी .

यही  आज  का  गीत  है .
डर  के  आगे  जीत  है .

दुनियादारी  के  चक्कर  में ,
भूल  गए  जो  राहे  खुदा .
हो  गया  उससे  तुम्हारा ,
रास्ता  ही  अगर जुदा .
तोड़  दिया  दुनिया  में  ही ,
जो  तुमने  उससे  वास्ता .

फिर  कभी  हरगिज़  न  उससे ,
प्रीत  तुम्हारी  होगी .
डर  रखो  अल्लाह  का ,
जीत  तुम्हारी  होगी .

यही  आज  का  गीत  है .
डर  के  आगे  जीत  है .

नेक  बंदो  करलो  तुम ,
आज  यहाँ  पर  अच्छे  काम .
अच्छे  का  अच्छा  मिलेगा ,
बुरे  का  बुरा  होगा  अंजाम .
आज  ही  संभल  जाओ  दोस्तों ,
आने  ही  वाली  है  शाम .

संभल  गए  तो  फिर  यकीनन ,
जीत  तुम्हरी  होगी .
डर  रखो  अल्लाह  का ,
जीत  तुम्हारी  होगी .

यही  आज  का  गीत  है .
डर  के  आगे  जीत  है .

हर  पल  हर  एक  सांस  का ,
देना  होगा  हिसाब  तुम्हे .
कर्मो  की  हाथो  में  तुम्हारे ,
जब  देगा  वो  किताब  तुम्हे .
या  तो  जन्नत  पाओगे  तुम ,
या  फिर  घेरेगा  अज़ाब  तुम्हे .

फिर  बात  तुम्हारी  नहीं  चलेगी ,
और  ना  रीत  तुम्हारी  होगी .
डर  रखो  अल्लाह  का ,
जीत  तुम्हारी  होगी .

यही  आज  का  गीत  है .
डर  के  आगे  जीत  है .

याद  रखो  बंदो  एक  दिन ,
सबको  लौटकर  जाना  है .
आमालो  का  यकीनन  अपने ,
हिसाब  किताब  चुकाना  है .
इस  दुनिया  के  बाद  की  दुनिया ,
ही  आखरी  ठिकाना  है .

या  तो  वहा  पर  हारोगे ,
या  जीत  तुम्हारी  होगी .
डर  रखो  अल्लाह  का ,
जीत  तुम्हारी  होगी .

यही  आज  का  गीत  है .
डर  के  आगे  जीत  है .


पंडित  मुस्तफा  आरिफ 

गुरुवार, 9 जून 2011

ABDE MUHMMAD KABEER





अब्दे  मुहम्मद  कबीर
मुहम्मद  (SAW) का  बढ़ा ग़ुलाम

ए मेरे  रहबर  ए रसूले  खुदा .
ए  मेरे  प्यारे  नबी  ए  मुहम्मद  मुस्तफा .

में  हु  ताबेदार  तेरा
हां  ! में  हु  तेरा  गुलाम
अस्सलाम  अस्सलाम 

अब्दे  मुहम्मद  कबीर ,
उसने  ही  पुकारा  मुझे .
इस  तरह  बख्श  दिया ,
तेरा  सहारा  मुझे 
.
पूरी  करदी  यूँ  उसने ,
मेरी  हाजत  तमाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

सच  है  ए  प्यारे  नबी ,
वो  ही  जाने  ग़ैब  की  बात ,
ख्वाब  में  उसने  ही  बख्शी ,
तेरे  पीछे  चलने  की  सौगात 
.
शान  से  कह  दिया  मुझे ,
उसने  मुहम्मद  का  गुलाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

तस्बीह  में  करता  हु  उसकी ,
ए  नबी  रात  और  दिन .
ख्वाब  में  कह  दिया  उसने ,
मुझे  महबूबे  हषर  अलीमुद्दीन 
.
बस  तू  ही  तो  जनता  है ,
उसकी  मर्ज़ी  उसका  काम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

ए  मुहम्मद  तू  भी  दे  दे ,
मुझको  तोहफा  एक  नायाब .
झोली  में  खाली  लेकर ,
आया  हु  तेरे  जनाब 
.
तू  ही  बता  दे  ए  मुहम्मद ,
मेरे  ख्वाबो  का  अंजाम .
अस्सलाम   अस्सलाम

नूर  उसका  देखा  मेने ,
सब्ज़  तेरा  साया  देखा .
कर्बला  वाले  को  भी ,
मेने  तनहा  बेठा   देखा .

छाये  है  इस  क़दर  मुझ पर ,
अल्लाह  के  निन्यानवे  नाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

ए  मुहम्मद  ज़रा  बता  दे ,
कौन  है  युसूफ  यहाँ .
ख्वाब  का  उससे  बेहतर ,
कौन  है  मतलब  समझा 
.
ए  मुहम्मद  तू  ही  बता  दे ,
ज़मीन  पर  युसूफ  सा  नाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

मेरे  इन  ख्वाबो  की  ताबीर ,
ए  मोहम्मद  रब  ही  जाने .
तू  तो  सब  कुछ  जानता  है ,
कोई  जाने  या  न  जाने 
.
प्यारे  नबी  तू  ही  बता  दे ,
दर  पे  है  तेरे  गुलाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 
.
वारिज्वानुम  मिनल्लाहे  अकबर ,
अल्लाह  की  मर्जी  को  सलाम .
ताक़याम्त  लेता  रहू  में ,
अल्लाह  अल्लाह  अल्लाह  नाम 
.
नात  लिखना  हो  मुक़द्दर ,
हम्दो  सना  हो  मेरा  काम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

पाया  है  तुने  मुहम्मद ,
जो  फ़रिश्ते  से  पैघाम .
ख्वाबो  में  आती  है  मेरे ,
वो  ही  आयातें  तमाम 
.
पाया  है  हमने  तुझसे  ही ,
बारी-ताला  का  पयाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

पंडित  मुस्तफा  आरिफ 

अल्लाह से दुआ करें की इस ज़माने में मेरे खवाबो की ताबीर बतानेवाला अल्लाह का कोई नेक बन्दा मिल जाये और हम राहे खुदा पर उसके रसूल के ताबेदार बन्दे  अपना सब कुछ न्योछावर करदे- आमीन

रविवार, 5 जून 2011

JANNAT KI HAWA



जन्नत  की  हवा 

मेरा  दर्द  समझ  सके  जो ,  मुझे वो  मसीहा  दे  दे .
मुझको  मेरे  इलाही , तू  वो  मुश्किलकुशा  दे  दे .

 मेरे दिल  में  क्या  छुपा  है , सब  जानता  है  फिर  क्यु ?
चुपचाप  यू  तमाशा , तू  देख  रहा  दे  दे .

न  जाने  तलाश  मेरी , कब  कैसे  पूरी  होगी .
मंजिल  तलक  में  पहुंचू , वो  राह  ज़रा  दे  दे .

जुम्बिश  नहीं  हाथो  में , है  जिस्म  भी  शकिश्ता.
नज़रे  थकी  हुई  है , अब  तो  आसरा  तेरा  दे  दे .

टूटी  हुई  है  लाठी , पहुंचूंगा  तुझ  तक  कैसे ?
इतना  नसीब  में  तू , चलना  तो  ज़रा  दे  दे .

देता  है  छप्पर  फाड़कर , में  ने  सुना  है  सब  से .
टूटी  हुई  चाट  है  मेरी , पहले  साया  तो  ज़रा  दे  दे ,

रूदाद  मेरी  सुनता  कोई  नहीं  जहां  में ,
ऐसा  कोई  एक  बंदा , तेरा  तो  यहाँ  दे  दे .

अब  तेरे  सिवा  किसी  पर , भरोसा  नहीं  है  मेरा .
अब  थाम  ले  मुझे  तू , सहारा  तो  ज़रा  दे  दे .

जंगल  में , बयाबां में , मजधार  में , तुफा  में .
दर  दर  की  ठोकरों  का , अब  तो  तू  सिला  दे  दे .

तेरे  सिवा  यहाँ  पर , कोई  दूजा  खुदा  नहीं  है .
तुझ  पर  ही  अकीदा   है , मेरा  ए खुदा  दे  दे .

जाने  कब  सुनेगा , आरिफ  की  दुआ  अल्लाह .
ज्यादा  नहीं  थोड़ी  सी , तेरी  जन्नत  की  हवा  दे दे .

पंडित  मुस्तफा  आरिफ 

मंगलवार, 31 मई 2011

THAK HAAR KAR ILLAHI !!!




 
थक  हार  कर  इलाही  !!!

क्या  क्या  बताऊँ  सबको , तेरे  बारे  में  खुदां में .
कुरान  से  खोल  पाया , सब  दिल  की  खिडकीया   में .

कोई  दर्द  मेरा  सुनले , तेरे  सिवा  इलाही ,
लगता  नहीं  बना  है , ऐसा  कोई  जहाँ  में .

हर  दर  हर  एक  चौखट   पर , रुसवा  हुआ  में  जब  तो ,
थक  हार  कर  फिर  से , तेरे  दर  पे  आ  गया  में .

बिगड़ी  कोई  बना  दे , ये  आरजू  लिए  में ,
भटका  मेरे  इलाही , न  जाने  कहा  कहा  में .

हर  शख्श  ने  पुकारा , मेरा  पास  चल  के  आ  जा ,
हां  ! एडिया   रगड़ते , वहां  तक  पहुँच  गया  में .

हर  शख्श  ने  पुकारा , बस  में  ही  हु  मसीहा ,
मुश्किलकुषा  भी  में  हु , माबूद  में  खुदा  में .

तौबा  कुबूल  करना , लेकिन  ये  बात  सच  है ,
मजबुरिया  मिलाती  है , शेतान   से  इंसान  को  दुनिया  में .

फिर  रौशनी  अता की , मेरी  ज़िन्दगी  में  तू  ने ,
शिद्दत  से  कुरान  का , हर  लफ्ज़  पढ़  गया  में .

फिर  तुने  ही  हिदायत , मुझे  सब्र  की  अता  की ,
फिर  राह  पर  ही  तेरी , सारी  उमर चला  में .

अब  तो  यही  है  ख्वाहिश , तेरे  दर  पे  जब  भी  आऊं,
पा  जाऊं  तुझसे  तेरे , बस  रहम  का  दरया में .

पंडित  मुस्तफा  आरिफ , देलहि

बुधवार, 25 मई 2011

MAHIMA PAISE KI






 महीमा पैसे की

पैसा  नचा  रहा  है  यू  इंसान  को  उँगलियों  में .
मदारी  नचाये  बन्दर  ज्यु  शहर की गलियों  में .

शोहरत  उगा  रहा  है  गमलो  में  क्यारियों  में .
पैसा  ही  छा  रहा  है  हर   सिम्त  वादियों  में .

अल्लाह  को  भूल  दुनिया  पैसे  की  है  पुजारिन ,
पैसे  ने   रख दिया  है  खुद  उसको  हाशियों  में .

तहज़ीब  भूल  बेठे  पैसे  के  बल  पर   बच्चे ,
जीना  सीखा  रहे  हैं  बुजुर्गो  को  बस्तियों  में .

रुदाद  कोई  किसी  की  सुनता  नहीं  यहाँ  पर ,
बहर  है  कानो  पर  अँधियारा  है  अंखियों  में .

बस  एक  तेरे  दर  पर  नज़रें  लगी  हुई  है ,
मायूस  नहीं  होता  कोई  तेरी  वादियों  में .

कचरा  जलाएगा  तू  जिस  दिन  मेरे  इलाही ,
रख   लेना  मुझे  चुनकर  तू  अपने  मोतियों में .

सब्रो -करार -नसीहत  है  मुफलिसों  की  दोलत  ,
पैसे  के  ही  पुजारी  शामिल  है  हस्तियों  में .

अब तो सरस्वती  भी लक्ष्मी की है पुजारिन 
रख दी है वीणा उसने उसकी तिजोरियों में.

लक्ष्मी खरीदती है इल्मो हुनर अब खुद ही,
जकड़ा है आलिमों को उसने भी बेड़ियों में.


पैसे  के  बगेर किसीको  कुछ  सूझता  नहीं   है ,
पैसे  का  ही  चलन  है  पंडितो  मौलवियों में .

में  हु  यहाँ  परेशां  पैसे  की  ही  वजह  से ,
रोजाना  हारता  हु  दुनिया  से  में  रुपयों में .

सब  कहते  है  दम  है  शब्दों  में  तेरे  आरिफ ,
उड़  जायेंगे  लेकिन  ये  पैसे  की  आंधियों  में .

पंडित  मुस्तफा  आरिफ

रविवार, 1 मई 2011

SHUKRA HAI ALLAH KA



शुक्र   है  अल्लाह  का


कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .
बख्श  दी  तुने  जिसे  तेरी  हम्दो -सना .

मुझ  पे  अल्लाह  तेरा  खूब  एहसान  है .
याद  रखु  तेरे  जो  भी  फरमान  है ,
सबके  दिल  में  बसाऊ जो  कुरान  हँi.
जाकर  उनको  पदाऊ  जो  नादाँ  है .

मेरे  अल्लाह   मुझे  इसके  काबिल  बना .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

जिस  तरह  दूर  रखा  मुझे  कुफ्र  से .
जोड़े  रखा  मुझे  तुने  गोरो -फिक्र  से .
ये  सही  है  बचाया  तुने  ही  शिर्क  से .
जोडू  में  सबको  वैसे  ही  तेरे  ज़िक्र  से .

दे  दे  मुझको  हिदायत  तू  बे -इन्तहा .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

था  अँधेरा  बहुत  रौशनी  थी  नहीं .
जी  रहा  था  मगर  ज़िन्दगी  थी  नहीं .
मेरे  पेरो  के  नीचे  ज़मी  थी  नहीं .
सजदा  करता  में  वैसी  ज़बी थी  नहीं .

ऐसे  में  तूने  कुरान  अता  कर  दिया .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

तेरे  कुरान  ने  ही  आँख  खोली  मेरी ,
आखिर  तुने  ही  भरी  खली  झोली  मेरी .
एक  दिन  बोलेगी  दुनिया  भी  बोली  मेरी .
बड  जाएगी  जब  मुमिनो  की  टोली  मेरी .

मेरे  जैसा  ही  हर  शख्श  होगा  यहाँ .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

जानता  हु  की  छोटा  सा  तिनका  हु  में .
तेरी  खल्कात  में  भी  सबसे  नन्हा  हु  में .
बस  इधर  से  उधर  उड़ता  रहता  हु  में .
जोर  तुझसे  ही  पाकर  के  चलता  हु  में .

में  हु  कुछ  भी  नहीं  सब  करम  है  तेरा .
कर  रहा  शुक्रिया  तेरा  ये  मुस्तफा .

शुक्रवार, 25 जून 2010

BAS TERE HI SAHARE






बस तेरे ही सहारे !!!


हमने  ख्वाबो  में  बनाया  था  घरोंदा  अपना .  
तोड़  डाला  आखिर  तुने  तो  भरोसा  अपना .

लौट  कर  हमको  जब  तेरे  ही  पास  आना  था ,
तुने  हमको  बनाया  क्यों  खिलौना  अपना

पुतिल्या  तेरी  डोर  तेरी  नाच  भी  तेरा ,
क्यों  दिखता  है  सबको  यु  तमाशा  अपना .

जो  मुक़द्दर  में  लिखा  है   मिलना  नहीं  है  उसके  सिवा ,
तुने  पहले  से  ही  जो  लिख  रखा  है  खाता  अपना .


हमतो  दरवेश  है  तू  बादशाह है  सबसे  बड़ा ,
देदे  हमको  भी  पनाह  ज़रा  फैलाले अहाता  अपना .

हमतो  ज़र्रे  है  तू  है  काएनात  का  मालिक ,
खाली  होगा  जब  मकाँ तो  मांगेगा  किराया  अपना .

आरिफ  जाओ  सुपुर्द  करदो  अपना  सब  कुछ  उसके  हाथ ,
वो  मुहाफ़िज़  है  बचा  ले  जायेगा  शीशा  अपना