गुरुवार, 9 जून 2011

ABDE MUHMMAD KABEER





अब्दे  मुहम्मद  कबीर
मुहम्मद  (SAW) का  बढ़ा ग़ुलाम

ए मेरे  रहबर  ए रसूले  खुदा .
ए  मेरे  प्यारे  नबी  ए  मुहम्मद  मुस्तफा .

में  हु  ताबेदार  तेरा
हां  ! में  हु  तेरा  गुलाम
अस्सलाम  अस्सलाम 

अब्दे  मुहम्मद  कबीर ,
उसने  ही  पुकारा  मुझे .
इस  तरह  बख्श  दिया ,
तेरा  सहारा  मुझे 
.
पूरी  करदी  यूँ  उसने ,
मेरी  हाजत  तमाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

सच  है  ए  प्यारे  नबी ,
वो  ही  जाने  ग़ैब  की  बात ,
ख्वाब  में  उसने  ही  बख्शी ,
तेरे  पीछे  चलने  की  सौगात 
.
शान  से  कह  दिया  मुझे ,
उसने  मुहम्मद  का  गुलाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

तस्बीह  में  करता  हु  उसकी ,
ए  नबी  रात  और  दिन .
ख्वाब  में  कह  दिया  उसने ,
मुझे  महबूबे  हषर  अलीमुद्दीन 
.
बस  तू  ही  तो  जनता  है ,
उसकी  मर्ज़ी  उसका  काम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

ए  मुहम्मद  तू  भी  दे  दे ,
मुझको  तोहफा  एक  नायाब .
झोली  में  खाली  लेकर ,
आया  हु  तेरे  जनाब 
.
तू  ही  बता  दे  ए  मुहम्मद ,
मेरे  ख्वाबो  का  अंजाम .
अस्सलाम   अस्सलाम

नूर  उसका  देखा  मेने ,
सब्ज़  तेरा  साया  देखा .
कर्बला  वाले  को  भी ,
मेने  तनहा  बेठा   देखा .

छाये  है  इस  क़दर  मुझ पर ,
अल्लाह  के  निन्यानवे  नाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

ए  मुहम्मद  ज़रा  बता  दे ,
कौन  है  युसूफ  यहाँ .
ख्वाब  का  उससे  बेहतर ,
कौन  है  मतलब  समझा 
.
ए  मुहम्मद  तू  ही  बता  दे ,
ज़मीन  पर  युसूफ  सा  नाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

मेरे  इन  ख्वाबो  की  ताबीर ,
ए  मोहम्मद  रब  ही  जाने .
तू  तो  सब  कुछ  जानता  है ,
कोई  जाने  या  न  जाने 
.
प्यारे  नबी  तू  ही  बता  दे ,
दर  पे  है  तेरे  गुलाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 
.
वारिज्वानुम  मिनल्लाहे  अकबर ,
अल्लाह  की  मर्जी  को  सलाम .
ताक़याम्त  लेता  रहू  में ,
अल्लाह  अल्लाह  अल्लाह  नाम 
.
नात  लिखना  हो  मुक़द्दर ,
हम्दो  सना  हो  मेरा  काम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

पाया  है  तुने  मुहम्मद ,
जो  फ़रिश्ते  से  पैघाम .
ख्वाबो  में  आती  है  मेरे ,
वो  ही  आयातें  तमाम 
.
पाया  है  हमने  तुझसे  ही ,
बारी-ताला  का  पयाम .
अस्सलाम  अस्सलाम 

पंडित  मुस्तफा  आरिफ 

अल्लाह से दुआ करें की इस ज़माने में मेरे खवाबो की ताबीर बतानेवाला अल्लाह का कोई नेक बन्दा मिल जाये और हम राहे खुदा पर उसके रसूल के ताबेदार बन्दे  अपना सब कुछ न्योछावर करदे- आमीन

रविवार, 5 जून 2011

JANNAT KI HAWA



जन्नत  की  हवा 

मेरा  दर्द  समझ  सके  जो ,  मुझे वो  मसीहा  दे  दे .
मुझको  मेरे  इलाही , तू  वो  मुश्किलकुशा  दे  दे .

 मेरे दिल  में  क्या  छुपा  है , सब  जानता  है  फिर  क्यु ?
चुपचाप  यू  तमाशा , तू  देख  रहा  दे  दे .

न  जाने  तलाश  मेरी , कब  कैसे  पूरी  होगी .
मंजिल  तलक  में  पहुंचू , वो  राह  ज़रा  दे  दे .

जुम्बिश  नहीं  हाथो  में , है  जिस्म  भी  शकिश्ता.
नज़रे  थकी  हुई  है , अब  तो  आसरा  तेरा  दे  दे .

टूटी  हुई  है  लाठी , पहुंचूंगा  तुझ  तक  कैसे ?
इतना  नसीब  में  तू , चलना  तो  ज़रा  दे  दे .

देता  है  छप्पर  फाड़कर , में  ने  सुना  है  सब  से .
टूटी  हुई  चाट  है  मेरी , पहले  साया  तो  ज़रा  दे  दे ,

रूदाद  मेरी  सुनता  कोई  नहीं  जहां  में ,
ऐसा  कोई  एक  बंदा , तेरा  तो  यहाँ  दे  दे .

अब  तेरे  सिवा  किसी  पर , भरोसा  नहीं  है  मेरा .
अब  थाम  ले  मुझे  तू , सहारा  तो  ज़रा  दे  दे .

जंगल  में , बयाबां में , मजधार  में , तुफा  में .
दर  दर  की  ठोकरों  का , अब  तो  तू  सिला  दे  दे .

तेरे  सिवा  यहाँ  पर , कोई  दूजा  खुदा  नहीं  है .
तुझ  पर  ही  अकीदा   है , मेरा  ए खुदा  दे  दे .

जाने  कब  सुनेगा , आरिफ  की  दुआ  अल्लाह .
ज्यादा  नहीं  थोड़ी  सी , तेरी  जन्नत  की  हवा  दे दे .

पंडित  मुस्तफा  आरिफ